खरगोन3 मिनट पहले
खरगोन में एक मंदिर घंटी वाला मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह सेवरीधाम के मोती बाबा का देव स्थान है। मंदिर परिसर में 5 हजार से अधिक छोटी-बड़ी घंटियों का ढेर लगा है। 7 बड़ी घंटी और 4 बड़े घंटे लगे हैं। इनका वजन 4 क्विंटल है। इस मंदिर में कोई भी पुजारी या चौकीदार नहीं है। फिर भी यहां से कभी एक भी घंटी चोरी नहीं हुई।
भीकनगांव से 10 किमी दूर पोखर बुजुर्ग में सेवरीधाम के नाम से शेषावतार नागदेवता का यह मंदिर है। इस मंदिर में भाद्रपद की चतुर्दशी पर सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं। मंदिर परिसर में लगे पवित्र फीफर (पीपल और गुल्लर प्रजाति का पेड़) की परिक्रमा भी करते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु हलवा प्रसादी बनाकर ग्रहण कर घंटी बांधते हैं। खास बात यह है कि हलवा प्रसादी भक्तों को यहीं खाना होती है। वे इसे साथ में नहीं ले जा सकते। सुबह से मंदिर में पूजन-अभिषेक के साथ भक्त ही देसी घी से हलवा प्रसादी तैयार करते हैं।
मोती बाबा नागलवाड़ी के प्रसिद्ध भीलट देव के हैं वंशजसेवरीधाम पोखर बुजुर्ग में दर्शन-पूजन कर श्रद्धालु यहां पीतल की घंटियां चढ़ाते हैं। बताते हैं कि मोती बाबा नागलवाड़ी के प्रसिद्ध भीलट देव के वंशज हैं। बाबा हरदा जिले के ‘अंजनी बमणी’ गांव से आए थे। बुजुर्ग बताते हैं कि इस स्थान पर सेवरी घास बहुत मात्रा में लगती है। इस कारण मोती बाबा को सेवरी देव भी कहा जाता है।
ग्रामीणों का कहना है कि एक ओर जहां किसानों के खेतों से मोटरें और केबल चोरी हो जाती है। वहीं, खेतों के बीच इस देवस्थान पर हजारों पीतल की घंटियां व बड़े-बड़े घंटों सहित अन्य सामान पड़ा रहता है, लेकिन अब तक यहां चोरी नहीं हुई।
वर्षों पुराने पेड़ की बिना टहनी काटे किया शिखर का निर्माणमंदिर के शिखर का निर्माण भी अनूठे ढंग से किया गया है। 61 फीट ऊंचे इस शिखर में से होकर फीफर पेड़ की शाखाएं निकलती हैं। इस शिखर के निर्माण के लिए पेड़ की एक भी टहनी को नहीं काटा गया है। पेड़ के मूल में ‘मोती बाबा’ की प्रतिमा है।
बरसों से चल रहा घंटियां चढ़ाने का सिलसिला
ग्रामीणों ने बताया कि इस स्थान के प्रति लोगों में गहरी आस्था है। मंदिर में घंटी चढ़ाने का क्रम बरसों से चल रहा है। मंदिर के प्रदीप सिंह चौहान ने बताया कि परिसर में जगह नहीं होने तथा मंदिर में लगे टीन शेड और एंगल द्वारा भारी वजन सहन नहीं कर पाने के कारण अब सभी घंटियां निकाल कर रख दी गई हैं। नीचे रखी इन घंटियों का वजन क्विंटलों में है।
श्रद्धालु ले जाते हैं झिरी का पानीग्रामीणों ने बताया कि यहां के झिरी का पानी केन या बर्तन में भरकर साथ ले जाते हैं। यह जलभरा पात्र कितनी ही दूर क्यों न ले जाना हो, जमीन पर नहीं रखा जाता। इसे संभाल कर पूजा घर में या खूंटी पर टांगते हैं। इस जल का छिड़काव फसलों पर किया जाता है। ग्रामीणों द्वारा घर में सुख-समृद्धि के निमित्त मोती बाबा का जल प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
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