Hindi NewsLocalMpIndoreArrangement Of Officers, Only 3 Deputy Commissioners In 19 Zones, 19 Deputy Commissioners Needed In Corporation, 16 Posts Lying Vacant, Two Near Retirement
इंदौर39 मिनट पहलेलेखक: हरिनारायण शर्मा
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नगर निगम के 24वें महापौर की शपथ शुक्रवार को होगी। नए मेयर के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कुशल अफसरों की कमी। अब तक निगम में अफसरशाही हावी थी, लेकिन एक के बाद एक अफसर यहां से या तो चले गए या सेवानिवृत्त हो गए। हाल यह है कि निगम में कार्मिक अधोसंरचना 2014 के हिसाब से 19 जोन के लिए 19 उपायुक्त (डिप्टी कमिश्नर) होना चाहिए, लेकिन अभी मात्र तीन उपायुक्त हैं।
इनमें से भी दो इसी माह रिटायर्ड हो जाएंगे। 2014 के सेटअप के हिसाब से इंदौर में कुल 4883 पद स्वीकृत हैं, लेकिन नियमित अधिकारी-कर्मचारी मात्र 1916 ही हैं। देश के सबसे स्वच्छ शहर का तमगा छठी बार लेने के लिए तैयार इंदौर नगर निगम में स्मार्ट सिटी, मेट्रो, फ्लायओवर सहित कई काम होना हैं।
ऐसे में अफसरों के अभाव में काम कैसे पूरे होंगे, यह नई परिषद के लिए चुनौती होगा। यही स्थिति निगम स्वास्थ्य विभाग में भी है, जहां 1913 में से 1309 ही नियमित हैं। अमले की कमी से कई प्राेजेक्ट 5 से 6 साल बाद भी पूरे नहीं हुए।
काम बड़े-बड़े हो रहे पर चीफ इंजीनियर ही नहींइंदौर-भोपाल में चीफ इंजीनियर का पद है, लेकिन इंदौर में अभी यह खाली है। अन्य स्टाफ की बात करें तो नियमित 1916 और विनियमित 1310 कर्मी हैं। संविद या अन्य में नियमित 8713 हैं तो निगम का कुल स्टाफ 19817 लोगों का है। अभी निगम में अधीक्षण यंत्री भी तीन हैं, लेकिन तीनों प्रभारी हैं। इनमें अशोक राठौर, महेश शर्मा और डी.आर. लोधी हैं। सीनियर राठौर ही हैं। सब इंजीनियर भी 85 वार्ड के हिसाब से नहीं हैं, इनकी संख्या 70 ही है।
प्राधिकरण की भी यही स्थिति : 100 में से 40
आईडीए की भी यही स्थिति है। यहां 40% पद खाली हैं। आईडीए के पास 5 नए फ्लायओवर, सुपर कॉरिडोर का विकास, 20 से ज्यादा स्कीमें, आउटर रिंग रोड जैसे काम भी हैं, लेकिन स्वीकृत 100 पदों में से 60 इंजीनियर ही बचे हैं। इनमें चीफ इंजीनियर से सब इंजीनियर तक शामिल हैं। दूसरा स्टाफ भी कम है, इसलिए जो 60 इंजीनियर हैं, उनका ही उपयोग संपदा, विधि विभाग में हो रहा है। कई काम अब आउटसोर्स पर आईडीए करने जा रहा है।
भास्कर एक्सपर्ट- जिस कैडर में कमी, वहां कुशल विकल्प देखना होंगे
शासन का सेटअप तो एक आदर्श स्थिति होती है। इसमें डिमांड की अपेक्षा अमला कम ही मिलता है। कई परिस्थिति में डिमांड पर शासन अतिरिक्त व्यवस्था देता है। अब शासन पीएससी से सीधी भर्ती कर रहा है। इनके आने में तीन साल लग जाते हैं। ऐसे में जो उपलब्ध सिस्टम है, उससे काम चलाना होता है। यह निर्भर करता है कि आप कैसे काम लेते हैं।- सी.बी. सिंह, सेवानिवृत्त आयएएस
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