जबलपुर34 मिनट पहले
आज रक्षाबंधन है। बहनों को खुशियों का तोहफा देने के साथ 3 बहनों की रुलाने वाली ये कहानी भी पढ़िए। तीन बहनों का इकलौता लाडला भाई… उसके लिए बहनें ही पूरा संसार थीं। आलम ये था कि एक बहन की शादी हुई तो उसने ससुराल नहीं जाने दिया। जीजा को मनाकर अपने घर ले आया। कहा- मेरी खुशी की खातिर वो यहीं आ जाएं। जीजा भी उसकी जिद को न टाल पाए। रक्षाबंधन को 10 दिन बचे थे। बहनें उसकी कलाई पर राखी बांधने की तैयारी कर रही थीं, लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था। जबलपुर के न्यू लाइफ अस्पताल में जब आग लगी तो वहां वार्ड बॉय वीर सिंह मरीजों की जिंदगी बचाने में ऐसे जुटा कि उसे अपनी जिंदगी का ख्याल ही नहीं रहा। जब तक बहनें पहुंचतीं, तब तक तो वीर सिंह का धुएं से दम घुट चुका था।
रक्षाबंधन से ठीक 10 दिन पहले 1 अगस्त की दोपहर अस्पताल अग्निकांड में जिंदगी गंवाने वाला वीर सिंह जैसा नाम, काम भी वाकई वैसा ही। जबलपुर के न्यू कंचनपुर इलाके में रहने वाले वीर के पिता का 20 दिसंबर 2008 को कैंसर से निधन हो गया था। वे लोको पायलट थे। घर में चार बच्चे थे। रोशनी, चांदनी, मोनिका और वीर। मां सरिता ठाकुर पर 4 बच्चों की परवरिश का जिम्मा था। रोशनी सबसे बड़ी थी। उसने मां के साथ परिवार को आगे बढ़ाया।
पिता की मौत हुई तो वीर 14 साल का था। छोटी बहन मोनिका की रेलवे में नौकरी लगी। वो नागपुर में शिफ्ट हो गई। कहती हैं- हम अपने भाई को कभी अकेले नहीं जाने देते थे। उसे गाड़ी नहीं लेने दी। वो साइकिल से ही चलता था, हमें डर लगता था कि कहीं एक्सीडेंट न हो जाए।
‘मेरे पास नागपुर आता था तो मैं बस ड्राइवर से बोलकर भेजती कि धीरे चलाना, मेरा भाई बैठा है। वो भी हमसे इतना ही प्यार करता था। जिस दिन अस्पताल में आग लगी, उस दिन भी 12 बजे उसने मां को फोन करके पूछा कि शंकर भगवान का अभिषेक कर लिया या नहीं। खाना खाया या नहीं। दवाई खाई की नहीं…
दूसरे नंबर की बहन चांदनी कहती है कि मेरी शादी हुई तो मुझे ससुराल में रुकने नहीं दिया। अपने जीजा को कसम देकर यहां बुला लिया। दोनों का 16 दिसंबर को जन्मदिन होता था। दोनों जीजा-साले साथ ही अपना जन्मदिन मनाते थे। उसके प्यार में ही मेरे पति यहां शिफ्ट हो गए। हमें क्या पता था कि वो खुद हमें छोड़कर चला जाएगा।
वो भी चाहता तो आग लगने के बाद डॉक्टरों की तरह भागकर जान बचा सकता था, लेकिन उसने अपनी जान की परवाह न कर वहां फंसे मरीजों और उनके परिजनों को बचाया। यदि वो स्वार्थी होता, तो दूसरों की जान नहीं बचाता। जिस अस्पताल में उसके नाम के किस्से होते थे, उनके मालिकों ने एक बार घर आकर हमारा हाल तक नहीं जाना कि हम अपने भाई के बिना किस हाल में हैं।’
(जैसा दैनिक भास्कर को वीर की बहनों ने बताया।)
वीर सिंह जबलपुर के न्यू लाइफ अस्पताल में वार्ड बॉय था।
अप्रैल 2021 में शादी हुई, 4 महीने की बच्ची
चांदनी कहती है कि 21 अप्रैल 2021 को वीर की शादी हुई। उसकी 4 महीने की बच्ची है। मैंने उसकी शादी के बाद कहा कि अब हम अपने घर जा रहे हैं, लेकिन वो नहीं माना। अपनी शादी के बाद भी उसने हमें मम्मी का घर नहीं छोड़ने दिया। कहता था कि तुम चली जाओगी तो मैं भी घर छोड़कर चला जाऊंगा।
भाई की मौत के बाद बहनों के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे।
उसकी मौत के बाद पत्नी वर्षा की आंखों से आंसू भी सूख गए हैं। वो गहरे सदमे में है। 4 महीने की बेटी को तो पता भी नहीं है कि उसके होश संभालने से पहले उसके पिता दुनिया छोड़ चुके हैं। वीर की मां सरिता ठाकुर कहती है कि कल जब ये बच्ची बड़ी होकर अपने पिता को पूछेगी तो हम क्या जवाब देंगे?
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जिस भाई को अकेला नहीं छोड़ते थे, उसे श्मशान में छोड़कर आए
वीर सिंह का कोई भाई नहीं था। उसे बहन मोनिका ने ही मुखाग्नि दी। मोनिका रोते हुए बोली कि जिस भाई को हम कभी अकेला नहीं छोड़ते थे, उसे हमें श्मशान में अकेला छोड़कर आना पड़ा। उसके शरीर पर खरोंच का एक निशान नहीं था, लेकिन उसे हमें अग्नि देनी पड़ी। उनका पूरा परिवार ही उजड़ गया। मां के लिए तो वीर अब भी लाड़ला था। मां उसके आने तक खाना नहीं खाती थी। अब तो वो कभी घर नहीं लौटकर आएगा। अब आगे की जिंदगी कैसे कटेगी, हमें भी नहीं पता।
वीर सिंह की चार महीने की बेटी है।
पड़ोसी भी वीर की मौत से सदमे में
वीर को पड़ोस में रहने वाले भी प्रेम करते थे। वीर की मौत का सदमा सिर्फ उसके घर में नहीं है, आस पड़ोस में रहने वालों की आंखों में भी आंसू हैं। पड़ोसी कहते हैं कि वीर जब शाम को अस्पताल से घर लौटता था, तो मोहल्ले में रौनक आ जाती थी। अब तो हमारी भी हिम्मत नहीं है कि वीर की मां और बहनों को हम हिम्मत दे सकें।
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