Hindi NewsLocalMpBhopalResearch Base; 5 Institutes Conducted 210 Research In 7 Years; Research Going On For 10 Institutes Of The Country And The World
भोपाल6 मिनट पहलेलेखक: भीम सिंह मीणा
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बीते 7 साल में भोपाल के 5 संस्थानों ने 210 से अधिक ऐसे रिसर्च किए हैं, जिनके उपयोग से आम आदमी के जीवन में बदलाव आए हैं।
भोपाल अब रिसर्चधानी बनता जा रहा है। बीते 7 साल में शहर के 5 संस्थानों ने 210 से अधिक ऐसे रिसर्च किए हैं, जिनके उपयोग से आम आदमी के जीवन में बदलाव आए हैं। जिन संस्थानों में यह रिसर्च हुए, उनमें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आइसर), एडवांस मटेरियल एंड प्रोसेस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एम्प्री) शामिल हैं। अकेले एम्स भोपाल में 7 साल से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के 129 रिसर्च चल रहे हैं या फिर पूरे हो गए हैं। इनमें से 124 रिसर्च पर 79.15 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं।
एम्स में कोविड से लेकर जीबी सिंड्रोम बीमारी पर यहां शोध किए जा रहे हैं। वहीं आइसर में छोटे बड़े मिलाकर 34 से अधिक रिसर्च हुए हैं। यहां हुए एक रिसर्च में कैंसर सेल को पूरी तरह खत्म करने का दावा किया गया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि डी- 29 वायरस के जरिए कैंसर का इलाज कीमोथैरेपी से ज्यादा कारगर सिद्ध होगा। उधर 22 से अधिक रिसर्च एम्प्री ने किए हैं। यहां के वैज्ञानिकों ने एल्यूमीनियम इंडस्ट्री से निकलने वाले वेस्ट का निष्पादन करने में सफलता पाई है। इस वेस्ट का निष्पादन एक बड़ी समस्या थी।
एम्स भोपाल : 16 करोड़ से यहां हुई क्षेत्रीय विषाणु विज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना… 16 करोड़ खर्च करके 2014 में डॉ. देबाशीष विश्वास के निर्देशन में ‘महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन के लिए प्रयोगशालाओं के एक नेटवर्क की स्थापना’ योजना के तहत एम्स भोपाल में एक क्षेत्रीय विषाणु विज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना की गई। अब यह फैसिलिटी लोगों को मिल रही है। कोविड से लेकर जीबी सिंड्रोम बीमारी पर यहां शोध किए जा रहे हैं। भारत के 43 टॉप मेडिकल इंस्टीट्यूट यहां रिसर्च कर रहे हैं। गुलियन बार्रे सिंड्रोम (जीबी सिंड्रोम) एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, इसमें शरीर का मध्य भाग लकवाग्रस्त हो जाता है।
एम्प्री भोपाल : यहां रेड मड से बनी टाइल्स का उपयोग रेडिएशन चैंबर्स में हो रहाएल्यूमीनियम इंडस्ट्री से वेस्ट के रूप में निकलने वाली लाल मिट्टी यानी रेड मड का निष्पादन एक बड़ी समस्या थी। इस लाल मिट्टी में आयरन समेत कई हैवी मेटल्स के ऑक्साइड्स हाेते है। एक साल में देश में 7 मिलियन टन रेड-मड बाय प्रोडक्ट के रूप में निकलती है। एम्प्री के साइंटिस्ट ने इस रेडमड से टाइल्स बनाए, जिनका इस्तेमाल हॉस्पिटल के रेडिएशन चैंबर्स में हो रहा है। इन चैंबर्स में पहले लैड का इस्तेमाल हाेता था, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। रेड मड के हैवी ऑक्साइडस से बनने वाली टाइल्स लैड के समान ही रेडिशन रोकती है।
आइसर : डी-29 वायरस से कैंसर सेल को खत्म करने का दावारिसर्च स्कॉलर सौम्या कामिला की रिसर्च में डी-29 वायरस से कैंसर सेल को पूरी तरह से खत्म करने का दावा किया गया है। रिसर्च को डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी नई दिल्ली से अनुमोदन मिल चुका है। यह रिसर्च फेडरेशन ऑफ यूरोपियन बायोकेमिकल सोसाइटी साइंटिफिक जर्नल में प्रकाशित भी हो चुकी है।
बीयू : 24 विभागों के 250 से ज्यादा रिसर्च पेपर पब्लिश4 साल पहले कैंपस के लिए रिसर्च पॉलिसी बनाई और विवि के 24 विभागों में लागू की। नतीजा यह हुआ कि स्टूडेंट और टीचर ने मिलकर 250 से अधिक रिसर्च पेपर पब्लिश कर दिए। रिसर्च बढ़ाने के लिए 14 विभागों को मिलाकर 4 क्लस्टर बनाए गए। इनमें बायालॉजी, साइंस, लैंगुएज और सोशल साइंस क्लस्टर शामिल हैं।
भोपाल में इन संस्थाओं के लिए हुए रिसर्च… सेंटर ऑफ डिसीज कंट्रोल एंड प्रिंवेंशन यूनाइटेड स्टेट, एओ ट्रामा एशिया पेसिफिक, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, साइंस एंड टेक्नोलॉजी, डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च, एनसीडीआईआर, नेशनल एड्य रिसर्च पुणे, नेशनल हेल्थ मिशन, बायोटेक्नाेलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंट काउंसिल, नेक्सटजेन इनविटरो डायग्नोसटिक्स प्राइवेट लिमिटेड हरियाणा, डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी और सेंट्रल ट्राइबल मिनिस्ट्री।
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