दो दिन के नवजात की दूरबीन से बनाई आहार नली: MP में पहली बार एम्स भोपाल में हुई ऐसी जटिल सर्जरी

भोपाल3 घंटे पहले

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राजधानी भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल में दो दिन के नवजात की दूरबीन से आहार नली (ईसोफेगस) बनाई गई। प्रदेश में पहली बार इतने छोटे बच्चे की आहार नली बनाई गई है। अब तक ऐसे मामलों में बच्चों को दिल्ली या मुंबई जैसे महानगरों में ले जाना पड़ता था, लेकिन अब एम्स, भोपाल में भी ऐसी सर्जरी की जाएगी। एम्स के डॉक्टरों ने बताया कि विदिशा के एक परिवार में जन्मा शिशु जन्म के बाद मां का दूध नहीं पी पा रहा था। विदिशा मेडिकल कॉलेज में जांच में पता चला कि बच्चे की आहार नली सांस की नली से जुड़ी हुई है। बच्चे को इलाज के लिए एम्स भोपाल रैफर कर दिया गया। यहां पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग में भर्ती किया गया। यहां जांच के बाद बच्चे की दूरबीन पद्धति (थोरैकोस्कोपी) से ऑपरेशन करने का निर्णय लिया गया।

दो बार में होती है सर्जरी

पीडियाट्रिक सर्जन ने बताया कि सामान्यतः इस बीमारी में बच्चे का जन्म के समय पहली और सालभर बाद दूसरी सर्जरी की जाती है। पहली सर्जरी में ऊपर की नली का हिस्सा गर्दन के बाहर बनाते हैं, जिससे वह जो भी खाता है वह गर्दन से बाहर आ जाता है तथा पेट में ऑपरेशन कर खाने की नली डाल दी जाती है। बच्चे को 1 साल तक इसी नली से खाद्य पदार्थ दिए जाते हैं। सालभर बाद दूसरा ऑपरेशन किया जाता है, जिसमें कि पेट (आमाशय) को छाती के द्वारा दिल के पीछे से लाकर गर्दन वाले छेद से जोड़ा जाता है।

यह था रिस्क फैक्टर

एम्स के पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. प्रमोद शर्मा ने बताया कि आमतौर पर ऐसे मामलों में ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है, लेकिन इसमें रिस्क बहुत ज्यादा होता है। ऐसे में बच्चे को थोरैकोस्कोपी करने का निर्णय लिया गया। उन्होंने बताया कि इस बीमारी को ट्रेकिओ-एसोफेजियल फिस्टुला कहा जाता है।साथ ही एसोफेजियल एट्रेसिया यानि आहार नली को सांस की नली में जुडे होने का पता चला था। बच्चे के सीने में जगह बहुत कम होती है इसलिए दूरबीन की सहायता से काम करना बहुत मुश्किल होता है। 3 मिमी दूरबीन की सहायता से आहार नली को सांस की नली से अलग की दोनों सिरों को जोड़ा गया। सामान्य तौर पर इस ऑपरेशन में 10 मिमी मोटी दूरबीन का उपयोग किया जाता है। सर्जरी के करीब एक सप्ताह बाद डिस्चार्ज कर दिया गया। डॉ. शर्मा नेबताया कि सर्जरी के 3 सप्ताह बाद बच्चा स्वस्थ है। सर्जरी में डॉ. रोशन चंचलानी, डॉ सुरेश के. टी. तथा एनीस्थीसिया विभाग की टीम जिसमें प्रोफेसर वैशाली, डॉ. पूजा एवं डॉ हरीश शामिल थे।

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