दादाजी मंदिर ट्रस्ट के विरोध में संकीर्तन यात्रा: भाजपा नेताओं ने कहा- फूलमाला-श्रीफल पर लगे प्रतिबंध हटाएं; ट्रस्टी बोले- समय अनुसार परिवर्तन जरुरी

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खंडवा35 मिनट पहले

श्री दादाजी धूनीवाले समाधिस्थल पर फूलमाला व श्रीफल चढ़ाने की परपंरा पर कोरोना काल में लगी रोक आज भी अनवरत जारी है। कोरोनाकाल खत्म होने के बाद इस रोक को हटाने के लिए शनिवार को ट्रस्ट के विरोध में संकीर्तन यात्रा निकाली गई। यात्रा का नेतृत्व भाजपा के तमाम नेताओं ने किया। इसकी वजह अधिकांश ट्रस्टियों का बैकग्राउंड कांग्रेस से जुड़ा होना है। बीजेपी नेता त्रिलोक यादव ने कहा- यह ट्रस्ट की हठधर्मिता है कि भक्तों को समाधि पर फूलमाला व नारियल चढ़ाने नहीं दिया जाता। इधर, ट्रस्टी परिवार के मुकेश नागौरी ने कहा- समय अनुसार परिवर्तन जरुरी है। इस रोक से श्रद्वालुओं को दर्शन में आसानी होती है। समाधिस्थल की बजाय धूनीमाई में नारियल छोड़िए।

सुबह 11 बजे यह यात्रा गणेश गाेशाला परिसर से संकीर्तन यात्रा शुरू हुई। दादाजी मंदिर तक निशान धारियों की अगवानी में दादाजी नाम भजते हुए श्रीफल और फूल माला लेकर दादाजी समाधि पर सामूहिक रूप से अर्पित किए। विरोध करने वाले सभी श्रद्धालु व भाजपा नेताओं का कहना है कि वर्तमान में काेराेना काल में लगाई सभी तरह की राेक हट चुकी है। इसलिए मंदिर में लगाई राेक भी हटाई जाए। हालांकि, ट्रस्टी यहीं कहते रहे कि व्यवस्थाओं में परिवर्तन होना समय की जरुरत है। पहले भक्तगण महाकाल मंदिर के गर्भगृह तक जाकर ज्योर्तिलिंग से लिपटते थे। लेकिन भक्तों की संख्या बढ़ने लगी तो परिवर्तन करना पड़े। इस दौरान त्रिलोक यादव, परमजीतसिंह नारंग, राजेश डाेंगरे, आशीष चटकेले, सुनिल जैन आदि शामिल हुए।

समाधि पर बगीचे के ही फूल चढ़ाते

ट्रस्टी मुकेश नागौरी, धर्मेंद्र बजाज ने बताया समाधि पर दादाजी परिसर में लगे बगीचे के ही फूल चढ़ाए जाते है। फूलों को अच्छे से साफ किया जाता है। सड़न वाली पत्तियों को छांटा जाता है। दुकानों पर विदेशी किस्म के फूलों की माला मिलती है, जिसके फूल बांसी होते है। रही बात प्रसादी की तो कोई श्रद्वालु पॉलिथीन में लेकर आता है तो सेवादास व पुजारी द्वारा रोक दिया जाता है। यदि कोई श्रद्वालु प्लेट, डिब्बे में दुकान या घर से प्रसादी बनाकर लाता है तो उसका भोग लगाया जाता है। ट्रस्ट जो भी नियम बनाता है, मंदिर के कर्मचारी, सेवादार से लेकर पुजारियों की सहमति ली जाती है। कुछ लोग धर्म और आस्था के नाम पर सिर्फ राजनीति करते है।

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