Hindi NewsLocalMpIndoreShukla Clashed With CM Contender Sunderlal Patwa; Know Why The Election Was Lost Because Of The Name ‘Bade Bhaiya’.
पराग नातू/अमित सालगट, इंदौर25 मिनट पहले
इंदौर के ‘बड़े भैया’ यानी विष्णु प्रसाद शुक्ला (85) का गुरुवार को निधन हो गया। शुक्रवार को इंदौर में ही उनका अंतिम संस्कार होगा। वे इंदौर भाजपा की राजनीति का बड़ा चेहरा थे और उनसे जुड़े किस्से भी बड़े रोचक हैं। आइए बताते हैं कि उनकी लाइफ के अनसुने किस्से, उनके करीबियों की जुबानी…
पहले 1990 के विधानसभा चुनावों का एक खास किस्सा पढ़िए…
जवानी में हम्माली भी की…
विष्णु प्रसाद शुक्ला जवानी के दिनों में हम्माली करते थे। वे रनगाड़े (सामान ढोने वाली बैलगाड़ी) भी चला चुके हैं। पूरा दिन मेहनत करने के बाद भी 10 रुपए ही बचा करते थे। कुछ समय के लिए मिल की नौकरी भी की। मजदूरों का दर्द समझा और उनके बीच बड़े भाई के रूप में जगह बनाई। इस तरह बड़े भैया के तौर पर पहचान हासिल की। भाजपा के वरिष्ठ नेता प्यारेलाल खंडेलवाल के आग्रह पर वे भाजपा से जुड़े। इमरजेंसी के दौरान मीसाबंदी के रूप में गिरफ्तार होकर 19 महीने जेल में भी रहे। बाद में शुक्ला सांवेर जनपद अध्यक्ष बने।
फोटो 1989 का है जब शुक्ला (बीच में सफेद कोट-पेंट में) ने विधानसभा-2 से दूसरी बार टिकट मांगा था।
टिकट के लिए CM दावेदार सुंदरलाल पटवा से भिड़ गए थे…
वे दो बार चुनाव लड़े और दोनों बार हार गए। जब 90 के दशक में दूसरी बार उन्होंने टिकट मांगा तो सुंदरलाल पटवा खेमे ने टिकट देने से मना कर दिया। विष्णुप्रसाद शुक्ला उस वक्त दिग्गज नेता प्यारेलाल खंडेलवाल के समर्थक थे। उस समय यह बात किसी से छुपी नहीं थी कि पटवा और खंडेलवाल एक-दूसरे को खास पसंद नहीं करते हैं। जब उन्होंने पिछले चुनाव में हारने की वजह से टिकट नहीं मिलने की बात पता चली तो वे उखड़ गए। तत्कालीन CM दावेदार सुंदरलाल पटवा से बहस कर ली और कहा कि ‘हम पार्टी को जिंदा कर सकते हैं तो मार भी सकते हैं।’ इस चेतावनी के बाद खलबली मच गई। हस्तक्षेप के बाद उन्हें दूसरी बार भी टिकट देना पड़ा लेकिन वे गुटबाजी के कारण फिर चुनाव हार गए। उन्हें दूसरी बार में सुरेश सेठ ने हराया था। उस समय भी शुक्ला ने चुनाव हारने के लिए पटवा को जिम्मेदार ठहराया था।
आरएसएस के निष्ठावान स्वयंसेवक थे बड़े भैया (बाएं)।
सुमित्रा महाजन को कड़ी सुरक्षा देना पड़ी
बड़े भैया ने तीसरी बार सीट बदलकर चुनाव लड़ा चाहा। जानकार बताते हैं कि तत्कालीन सांसद सुमित्रा महाजन इसके पक्ष में नहीं थीं। टिकट नहीं मिलने पर शुक्ला सांसद महाजन के खिलाफ सड़क पर उतर गए। पुलिस को दिल्ली से लौटी महाजन को रेलवे स्टेशन से ही कड़ी सुरक्षा में घर लाना पड़ा था।
विधायक बेटे संजय शुक्ला के साथ बड़े भैया।
टिकट मिला तो ‘बड़े भैया’ बनकर उतरे और ‘बड़े भैया’ के कारण ऐसे हार गए…
यह बात शायद ही पता होगी कि एक शख्स उनकी दोनों बार की विधायकी के बीच आकर खड़ा हो गया था। वह थे CPI उम्मीदवार अर्जुन सिंह हाड़ा। 1985 में जब शुक्ला ने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा तो वे करीब 3 हजार वोट से हारे थे। उनके वोट अर्जुन सिंह ने काटे और 11 हजार 596 वोट लाए थे। 1990 में दूसरे चुनाव में फिर अर्जुन सिंह CPI से उतरे और इस बार अपने नाम के साथ विष्णुप्रसाद शुक्ला ‘बड़े भैया’ की तरह अर्जुन सिंह ‘बड़े भैया’ लिखकर वोट मांगे। नतीजा इस चुनाव ‘बड़े भैया’ के कारण लोग कंफ्यूज हुए और वोट कटने के कारण मात्र 1082 वोट से शुक्ला ये चुनाव भी हार गए। तीसरी बार उन्हें टिकट नहीं दिया गया।
1985 में हुए विधानसभा चुनावों में इंदौर-2 विधानसभा के परिणाम।
भाजपा के दिग्गज नेता होकर कांग्रेस प्रत्याशी का प्रचार किया
विष्णु प्रसाद शुक्ला का पूरा परिवार भाजपा से जुड़ा है। एक बेटा संजय शुक्ला कांग्रेस से है। बेटे संजय शुक्ला को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया तो उन्होंने पार्टी के बजाय बेटे के पक्ष में वोट मांगे। इसके लिए बार पार्टी ने उन्हें कार्रवाई की चेतावनी भी दी लेकिन ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। भाजपा से जुड़े इस परिवार से भाजपा के टिकट पर कोई विधायक नहीं बना लेकिन कांग्रेस में शामिल बेटा जरूर विधायक बना।
शुक्ला को सर्वब्राह्मण संगठन का अखिल भारतीय अध्यक्ष चुने जाने पर उत्तर प्रदेश से ब्राह्मण समाज के बड़े नेता और वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र मिठाई खिलाते हुए।
ब्राह्मण समाज के बड़े नेता बने
बड़े भैया के करीबी दोस्त खुरासान पठान ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बड़े भैया के दरवाजे से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटा। वे सदैव मदद को तैयार रहे। कई बार विवाद भी हुए। ब्राह्मणों के अलग-अलग वर्गों को साथ में खड़ा किया और परशुराम जयंती मनाना शुरू किया। उन्होंने समाज की यात्रा शुरू हुई और वे सर्वब्राह्मण संगठन के अखिल भारतीय अध्यक्ष भी रहे।
जब 81 साल की उम्र में कहा था- दांत तोड़ देता…
2018 के विधानसभा चुनाव का एक किस्सा खूब चर्चा में रहा। विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-1 के तत्कालीन विधायक सुदर्शन गुप्ता उम्मीदवार थे। उनके सामने विष्णु प्रसाद शुक्ला के बेटे संजय मैदान में थे। तब एक कार्यक्रम में सुदर्शन गुप्ता ने संजय पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘मेरी पार्टी की गलती है कि आपके हिस्ट्रीशीटर पिता विष्णु प्रसाद शुक्ला को टिकट दिया।’ इससे गुस्साए विष्णु प्रसाद शुक्ला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और सरेआम कहा कि ‘विधायक बनने के बाद सुदर्शन गुप्ता को घमंड आ गया है। अगर अभी चुनाव नहीं होता और बेटा उम्मीदवार नहीं हो तो मैं उसके (गुप्ता) दांत गिरा देता। हिसाब बराबर कर लेता।’ सियासी पंडित आज भी मानते हैं कि सुदर्शन गुप्ता ने अगर बड़े भैया को नाराज न किया होता तो 2018 का विधानसभा चुनाव भी जीत जाते। यह चुनाव भाजपा हार गई थी।
अपने जिगरी दोस्त खुरासान पठान के साथ शुक्ला।
दोस्ती तोड़ने के तमाम प्रयास विफल रहे
भाजपा नेता विष्णु प्रसाद शुक्ला की एक मुसलमान से दोस्ती की कहानी भी गजब थी। दोस्त का नाम है खुरासान पठान। दोनों 65 साल से साए की तरह एक-दूसरे के साथ रहे। शुक्ला ने एक इंटरव्यू में कहा था कि हमने लगभग पूरी उम्र साथ-साथ बिताई है। लेकिन कभी एक-दूसरे का मजहब नहीं पूछा। मैं ठेठ ब्राह्मण हूं और खुरासान भाई ठेठ पठान। शुक्ला ने बताया था कि हमारी दोस्ती लोगों की आंखों में खूब खटकती थी। 1960 में मैं जनसंघ से जुड़ा था। उस समय जनसंघ की पहचान घोर हिन्दू पार्टी के रूप में थी। मैंने खुरासान भाई को कहा कि मैं जनसंघ से जुड़ गया हूं तुम भी पार्टी में आओगे क्या? मुझे याद है खुरासान भाई ने तत्काल कहा, तुम जहां मैं वहां। हम दोनों मिलकर पार्टी का काम करने लगे। एक मुसलमान हिंदूवादी पार्टी का काम कर रहा है ये देखकर लोग हैरान रह जाते थे। पठान कहते हैं कि उस समय समाज के कुछ लोगों ने पहले मुझे बड़े भैया से दोस्ती तोड़ने को कहा, फिर घर वालों को समझाया। जब इससे भी बात नहीं बनी तो बाकायदा उस समय के मुफ्ती ने मुझे और मेरे परिवार को समाज से बाहर निकालने के लिए फतवा तक जारी कर किया। शुक्ला कहते हैं पता नहीं मेरी दोस्ती में ऐसा क्या था कि खुरासान भाई ने समाज से टकराना उचित समझा पर मेरी दोस्ती नहीं तोड़ी। आखिरकार मुफ्ती साहब को फतवा वापस लेना पड़ा।
मुस्लिम दोस्त की मां ने शुक्ला की गोद में दम तोड़ा
खुरासान पठान के बेटे सद्दाम ने भास्कर से चर्चा में बताया कि दोनों की मुलाकात राजबाड़ा पर एक झगड़े के दौरान हुई थी। मेरे पिता का मोती तबेला इलाके में नाम था और बड़े भैया का बाणगंगा क्षेत्र में। दोस्ती का एक किस्सा सुनाते हुए सद्दाम बताते हैं कि मेरी दादी की तबीयत बहुत खराब थी। वो एमवाय अस्पताल में भर्ती थीं। मेरे पिता एक केस के कारण फरारी में चल रहे थे। उन्होंने बड़े भैया के पास दादी के अस्पताल में भर्ती होने की खबर पहुंचाई। इस पर बड़े भैया वहां गए और दादी का सिर अपनी गोद में लेकर बैठे रहे। मेरी दादी ने उनकी गोद में ही दम तोड़ा। सद्दाम ने बताया कि जब बडे़ भैया की माताजी का निधन हुआ था, तब मेरे पिताजी ने भी परिवार के बाकी लोगों की तरह मुंडन कराया था। मेरी दादी बड़े भैया को और उनकी माताजी मेरे पिता को अपने सगे बेटे की तरह मानती थीं।
इमरजेंसी में मीसाबंदी के रूप में जेल में 19 महीने रहे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भी थे करीबी।
कहते हैं कि दोस्त पर हमले का बदला लेने शुक्ला ने फेंके थे बम
सद्दाम ने दोनों की दोस्ती का एक और किस्सा सुनाते हुए दावा किया कि एक बार मेरे पिता पर उनके कुछ दुश्मनों ने पुरानी रंजिश में हमला कर दिया। पिता के शरीर पर तलवार से 36 घाव हुए थे। इसकी खबर जब बड़े भैया को लगी तो वे अपने दोस्त पर हुए हमले का बदला लेने के लिए विरोधी पक्ष के इलाके में घुस गए और उन पर बम से हमला कर दिया था।
(जानकारी विष्णु प्रसाद शुक्ला के मित्र खुरासान पठान के बेटे सद्दाम और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार।)
खबरें और भी हैं…