कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों की पड़ताल पर रिपोर्ट: दहेज की बलि चढ़ीं बेटियां; सवा साल में 30 मामलों का फैसला, सिर्फ 13 में हुई सजा

ग्वालियर19 मिनट पहलेलेखक: अंशुल वाजपेयी

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दहेज प्रताड़ना के कारण जीवन गंवाने वाली बेटियाें के मामले में आधे से अधिक आराेपी बरी हाे जाते हैं। यह तथ्य जिला न्यायालय, ग्वालियर के दहेज प्रताड़ना संबंधी प्रकरणों के आंकड़ाें के विश्लेषण में सामने आया है।

भास्कर ने जब जिला न्यायालय के फैसलों की पड़ताल की ताे पता चला कि बीते सवा साल में दहेज के लिए हत्या के कुल 30 मामलों में फैसला आया। इसमें केवल 13 मामलों में ही आरोपियाें को सजा हुई, जबकि 17 मामलों में सभी आरोपी बरी हो गए। इसमें सबसे ज्यादा चौंकाने वाला मामला पुलिस थाना जनकगंज का है। जिसमें युवती ने शादी के महज पांच माह के भीतर ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

इस मामले में पुलिस ने एकमात्र आरोपी अनीता वाल्मीकि (सास) को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। इन 17 मामलों में और भी ऐसे कई मामले हैं, जिनमें बेटियों ने दो साल में ससुरालजनों की प्रताड़ना से तंग आकर जीवनलीला समाप्त कर ली। लेकिन बेटियों को इसके लिए मजबूर करने वाले ससुरालजनों को सजा नहीं हो सकी।

सीधी बात- मिनी शर्मा, अपर लोक अभियोजक

फरियादी के बयान बदलने से आरोपी बरी हो जाते हैं

सवाल: ज्यादातर मामलों में आरोपी बरी क्यों हो रहे हैं?जवाब: दहेज प्रताड़ना के प्रकरणों में फरियादी, मृतका के माता-पिता या फिर भाई-बहन होते हैं। वे पहले तो रिपोर्ट दर्ज करा देते हैं, लेकिन बाद में सामाजिक व पारिवारिक वार्ताओं के द्वारा समझौता कर बयान बदल लेते हैं।

सवाल : ज्यादातर मामलों में सजा केवल पति को होती है?

जवाब: धारा 304 बी में कानून में अवधारणा है कि शादी होने के 7 साल के भीतर असमान्य परिस्थितियों में मृत्यु होने पर ये माना जाता है कि दहेज प्रताड़ना से तंग होकर ही आत्महत्या की गई या फिर हत्या कर दी गई। ऐसे में पति के साथ ही अन्य परिजनों को भी आरोपी बनाया जाता है। ऐसे मामलो में निर्दोष साबित होने का भार आरोपी पर ही होता है। हालांकि दहेज एक्ट का मामला 7 साल के बाद भी दर्ज हो सकता है।

सवाल: बयान बदलने से केस कमजोर हो जाता है क्या?जवाब: बयान बदलने से केस कमजोर होता है पर जिन मामलों में सुसाइड नोट मिला या मृत्यु पूर्व कथन हुए उनमें बयान बदलने के बाद भी सजा मिली है।

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