हरदा10 मिनट पहले
भादो मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भक्तिभाव से शहर के कई मंदिरों सें मंगलवार शाम को को धूमधाम के साथ विमान डोल निकाले जाएंगे। विमान के साथ श्रद्धालु जयघोष करते हुए कह रहे थे- हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैयालाल की। नगर भ्रमण के बाद जल बिहार के उपरांत भगवान के ढोल वापस मंदिरों में पहुचेंगे। शहर गढ़ीपुरा के प्राचीन पट्टाभिराम से करीब 100 सालों से इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है। यहां से निकलन वाले डोल को मंदिर समिति ने आधुनिकता से दूर रखकर परंपरा गत तरीके से निकला जाता है। जिसमें मंदिर से जुड़े लोग कड़ी मेहनत कर भगवान कृष्ण के नगर भ्रमण के लिए अपने हाथों से डोल की आकर्षक साज सज्जा कर तैयार करते हैं।
परंपरानुसार सजीव झांकियां तैयार गई। डोल में भगवान श्रीकृष्ण को सुंदर तरीके से सजाया गया है। मंदिर के व्यवस्थापक दिलीप गोडवोल ने बताया कि करीब सवा सौ सालों से यहाँ पर डोल ग्यारस के अवसर पर परंपरागत तरीके से डोल को तैयार किया जाता हैं। उन्होंने बताया कि यहां बनने वाले डोल को आधुनिकता से दूर रखा गया। जिस प्रकार से पुराने समय में रेशमी कपड़े, कागज के ताव, आटे से बनी लाइ से डोल को तैयार किया जाता है। मंदिर की परिक्रमा कर वापस मंदिर में आता हैं। डोल सजाकर उसमें भगवान कृष्ण को बैठाकर ग्राम भ्रमण कराया गया। इस दौरान महिलाओं के द्वारा अपने अपने घरों के सामने डोल का पूजन कर भगवान के दर्शनों का लाभ लिया जाता है।
शहर के इन मंदिरों से सालों से निकल रहे हैं। डोल-जिला मुख्यालय पर डोल ग्यारस का पर्व काफी उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। गोलापुरा कि गोसाई मंदिर, गाडरी समाज के राधाकृष्ण मंदिर, माहेश्वरी समाज के कन्हैया मंदिर, अग्रवाल समाज के पंचायती मंदिर, फाइलवार्ड, लक्ष्मीनारायण मंदिर सहित अन्य मंदिरों से भी आकर्षक साज सज्जा कर डोल ग्यारस की शाम को चल समारोह निकाला जा रहा है।
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