इंदौरी झांकियों पर महंगाई की मार: पर निराश नहीं होगा शहर, पूरे उत्साह के साथ झिलमिलाती झांकियों से रोशन होगी अनंत चतुर्दशी की रात

इंदौर44 मिनट पहले

इंदौर में अनंत चतुर्दशी पर निकलने वाली परम्परागत झांकियां इस बार दो साल बाद निकल रही हैं। कोरोना काल के कारण ये झांकियां दो साल से नहीं निकल पा रही थीं। इसे लेकर आयोजकों और लोगों में जबर्दस्त उत्साह है। शुक्रवार 9 सितम्बर की शाम झांकियों का चल समारोह शुरू हो जाएगा। इसे लेकर ट्रायल के लिए भी एक ही दिन बचा है। झांकियां तैयार करने के लिए आयोजक व कलाकार जज्बे के साथ लगे हैं। हमेशा की तरह इस बार भी कलाकारों को आर्थिक परेशानियां झेलना पड़ रही हैं।

दरअसल, बीते सालों में महंगाई के साथ झांकी बनाने में लगने वाली सामग्री की लागत भी बढ़ी है। ऐसे में बजट को लेकर काफी खींचतान चल रही है। स्थिति यह है हर मिल जहां पहले चार-चार झांकियां निकालती थी, वे अब एक या दो ही झांकियां निकाल रहे हैं। इसमें भी राशि कम होने से इसका असर अब झांकियों की झिलमिलाती चकाचौंध पर पड़ने लगा है। दो-दो झांकियां निकालने के बावजूद इनका कम से कम 5.50 से 6 लाख रु. तक का खर्च आता है। आयोजकों का कहना है कि अगर कुछ और लोगों का सहयोग मिले तो कलाकारों को उनकी मेहनताना देने का रास्ता खुल जाएगा।

आर्थिक तंगी के कारण इस बार झांकियों का बदलता स्वरूप।

आर्थिक तंगी के कारण इस बार झांकियों का बदलता स्वरूप।

विधायक व उद्योगपति आगे आएं

हुकुमचंद मिल समिति के प्रधान मंत्री नरेंद्रसिंह श्रीवंश ने बताया कि महंगाई और राशि नहीं मिलने का असर झांकियों पर पड़ता है। अगर एक झांकी में आठ पुतले हों तो फिर चार ही से काम चलना पड़ता है। झांकी के एक हिस्से में अगर 10 हजार रंग-बिरंगी लाइटिंग लगानी हो तो वहां 1-2 हजार लाइटिंग में ही समझौता करना पड़ता है। ऐसे में झांकी का आकर्षण कम हो जाता है। श्रीवंश का कहना है कि अगर हर विधायक और उद्योगपति मदद करें तो इस परम्परा में चार चांद लग जाएंगे और झांकियों का आकर्षण और नजारा कुछ होगा।

रातभर ऐसे उमड़ती है भीड़।

रातभर ऐसे उमड़ती है भीड़।

कलाकारों को ही हर साल करना पड़ता है समझौता

समिति के अध्यक्ष किशनलाल बोकरे बताया कि हम कलाकारों व वर्करों को मेहनताना नहीं दे पाते हैं। बजट कम होने से थीम चेंज करनी पड़ती है। अभी नगर निगम, आईडीए, नंदा नगर संस्था आदि से जो राशि मिलती है, उसी में काम चलाना पड़ता है। ऐसे में कलाकारों को पूरा मेहनताना नहीं मिल पाता है। वे हर बार समझौता करके ही झांकी निर्माण करते हैं। कई बार झांकी निकलने के एक-दो दिन पहले राशि मिलती है लेकिन फिर तैयारी करने में काफी कम समय रहता है।

बीते सालों में बारिश में भी अखाड़ों का रहा ऐसा क्रेज।

बीते सालों में बारिश में भी अखाड़ों का रहा ऐसा क्रेज।

…तो परम्परा को जीवित रखना कठिन हो जाएगा

स्वदेशी मिल गणेशोत्सव समिति के अध्यक्ष कन्हैयालाल मरमट ने बताया कि गणेशोत्सव के तहत झांकियां इसका एक हिस्सा है। पहले इसी कड़ी में कवि सम्मेलन व सांस्कृतिक आयोजन होते थे जो महंगाई व बजट के कारण खत्म हो गए। अगर ऐसी ही स्थिति रही तो आने वाले सालों में परम्परा को जीवित रखना कठिन हो जाएगा।

खूबसूरत झांकियों को बनाने में लगती है खासी राशि। (पुरानी झांकी

खूबसूरत झांकियों को बनाने में लगती है खासी राशि। (पुरानी झांकी

हुकमचंद मिल की झांकी का 99वां वर्ष

छह मिलों में सबसे पुरानी झांकी हुकुमचंद मिल की है। समिति के प्रधान मंत्री नरेंद्र श्रीवंश ने बताया कि 1924 में पहली बार सर हुकुमचंद सेठ ने निकाली थी। उस दौरान बैलगाड़ी व लालटेन में झांकी निकलती थी, फिर इसका स्वरूप बदलता गया। 1991 में मिल बंद होने के बाद 31 वर्ष हो गए हैं लेकिन हर साल खींचतान के बावजूद परम्परा का निर्वाह कर रहे हैं। आखिरी मिल 2002 में बंद हुई थी। इसी तरह मालवा मिल, राजकुमार, स्वदेशी, कल्याण और होप टेक्सटाइल की मिलों की झांकियां निकलते हुए 90 वर्ष से ज्यादा हो गए हैं।

नयनाभिराम झिलमिलाती झांकियां जिसे निहारने दूर-दूर से आते हैं लोग।

नयनाभिराम झिलमिलाती झांकियां जिसे निहारने दूर-दूर से आते हैं लोग।

आर्थिक खींचतान के बीच झांकियों के निर्माण पर बुरा असर

कल्याण मिल गणेशोत्सव समिति के अध्यक्ष हरनामसिंह धारीवाल (कल्याण मिल) ने बताया कि सालों पहले आर्थिक परेशानी नहीं थी क्योंकि उस दौरान मिलें चालू थी। पूरा खर्च मैनेजमेंट उठाता था और खुद वर्कर्स एक-एक दिन का वेतन देते थे। मिलें बंद होने के बाद परम्परा को जिंदा रखना हमारा कर्त्तव्य है और निभा भी रहे हैं। इसके बावजूद खींचतान के बाद कुछ सालों से दो-दो झांकियां ही निकाल रहे हैं। दो साल के कोरोना काल के कारण इस बार उत्साह दोगुना है लेकिन तंगी भी उतनी है।

बकौल धारीवाल सभी झांकी आयोजक 15 दिनों से राशि एकत्र करने में जुटे हैं। इस बार नगर निगम की ओर से महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने पांच झांकी निर्माताओं कल्याण मिल, हुकुमचंद मिल, स्वदेशी मिल, मालवा मिल और राजकुमार मिल को 1-1 लाख रु. व आईडीए की ओर से 2-2 लाख रु. की राशि मिली है जिससे काफी मदद मिली है। इसी कड़ी में पूर्व मंत्री सज्जनसिंह वर्मा ने 25-25 हजार व पूर्व विधायक सत्यनारायण पटेल ने 15-15 हजार रु. की राशि दी है। इस तरह एक-एक मिल को करीब 3.50 लाख रु. की मदद मिली है लेकिन ये पैसा झांकी की जरुरत का आधा ही है। मामले में निगम सभापति मुन्नालाल यादव व पार्षद नंदकिशोर पहाडिया ने अपना एक-एक दिन का वेतन देने की बात कही है।

प्रासंगिक, धामिर्क व पौराणिक गाथाओं पर भी बन चुकी हैं झांकियां।

प्रासंगिक, धामिर्क व पौराणिक गाथाओं पर भी बन चुकी हैं झांकियां।

झांकियों निर्माण पर लगने वाली सामग्रियां, खर्च व चुनौतियां

– झांकियों के विषय अनुरूप पुतलों, पहाड़ आदि को तैयार करना।

– पुतले को रूप देने के लिए उसमें लगने वाले महंगे रंग, बाल, कपड़े, सौंदर्य सामग्रियां।

– पहले पुतले मिट्‌टी और घासफूंस के बनते थे जो मौसमी प्रभाव से खराब हो जाते थे। उनके स्थान पर अब फाइबर के बनाए हैं जो गलते नहीं है लेकिन इसकी लागत ज्यादा आती है।

– देवी-देवताओं की वेशभूषा भी विशेष रूप से तैयार की जाती है जिसकी लागत ज्यादा होती है।

इस बार महंगाई की मार के कारण झांकियों में पुतलों की संख्या हुई कम।

इस बार महंगाई की मार के कारण झांकियों में पुतलों की संख्या हुई कम।

– झांकियों का खर्चा उसकी थीम पर ही निर्भर होता है जो अलग-अलग होता है।

– झांकियों को तैयार करने अलग-अलग स्टेज (चलित गाडियां)।

– सबसे ज्यादा आकर्षित करती हैं खूबसूरत व रंगबिरंगी लाइटिंग जो अब नई-नई प्रकार (एलईडी) की हैं तथा काफी महंगी हैं।

– झांकियों में तैयार होने वाली पेंटिंग, लोहा वेल्डिंग, वेशभूषा का खर्चा अलग-अलग होता है।

– हर झांकी के लिए एडवांस साउण्ड सिस्टम व जनरेटर। हर झांकी में 125 केवीए के दो-दो जनरेटर की जरूरत होती है।

– झांकियों के कलाकारों, इलेक्ट्रिशियन, कारीगरों का रोजाना का मेहनताना।

– फिर अनंत चतुदर्शी के दिन झांकियों के साथ जनरेटर के लिए साथ में चलने वाले दो-दो ट्रेक्टर।

– जनरेटर के लिए लगने वाला डीजल जो पहले 60 रु. लीटर था अब 100 रु. लीटर हो गया।

– 12 घंटे तक झांकियां निकलती है और गति धीमी रहती है। ऐसे में डीजल की खपत ज्यादा होती है।

बजट के कारण चकाचौंध में कटौती।

बजट के कारण चकाचौंध में कटौती।

झांकियों से जुड़े किस्से

– बीते 7-8 सालों से किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर अब झांकी नहीं बनाई जाती। इसका कारण है कि झांकी का विषय सरकार या प्रशासन पर प्रहार नहीं करना नहीं होना चाहिए। दरअसल 7 साल पहले प्रशासन के खिलाफ तैयार हुई एक झांकी को निकलने ही नहीं दिया गया था और पहले ही उसे प्रशासन ने अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद से अधिकांश झांकियां रामायण, महाभारत व पौराणिक प्रसंगों पर बनने लगी।

– राजनीति विषय पर भी अब झांकी नहीं निकाली जाती क्योंकि स्थानीय नेता इस बात पर आपत्ति लेते हैं कि झांकी में फलां का नाम है, मेरा नाम क्यों नहीं?

– कुछेक साल पहले झांकियों के बीच नेताओं की गाडियां व साथ में भजन का दौर हुआ जिससे पीछे की सारी झांकियां घंटों लेट हो गई। मामले में जिला प्रशासन को वस्तुस्थिति बताने पर इसका समाधान किया गया।

– राष्ट्रीय मुद्दों कारगिल, वर्ल्ड कप तथा पाकीजा फिल्म आदि विषयों पर झांकियां काफी सराही जा चुकी है।

– बीते सालों में इन छह मिलों के अलावा खजराना गणेश, नगर निगम, कनकेश्वरी इन्फोटेक, जैन समाज आदि की भी निकलने लगी है। इसमें प्रथम पूज्य खजराना गणेश की झांकी सबसे पहली रहती है।

– अब एक नई समस्या झांकी मार्ग के खजूरी बाजार वाले हिस्से और कृष्णपुरा छत्री के पास की है। यहां स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत सड़क का काम चल रहा है।

– झांकी का परम्परागत मार्ग चिकमंगलूर चौराहा, जेल रोड, एमजी रोड, कृष्णपुरा छत्री, जवाहर मार्ग, सीतलामाता बाजार खजूरी बाजार, एमजी रोड और जेल रोड होते हुए चिकमंगलूर मार्ग तक है। जेल रोड पर कई केबलें नीचे तक लटकी हुई है जिससे खतरा बना हुआ है।

– इस बार छह मिलों की 12 झांकियां रहेंगी जिसमें अधिकांश धार्मिक विषयों व एक-दो राष्ट्रीय मुद्दों पर होगी।

– अभी कल्याण मिल परिसर में काफी कीचड़ है इसलिए बाहर फुटपाथ पर शेड में इसका निर्माण हो रहा है।

इस झांकी को अभी अंतिम रूप देना बाकी।

इस झांकी को अभी अंतिम रूप देना बाकी।

इस बार 12 आयोजक निकालेंगे 25 से ज्यादा झांकियां

इस बार 12 आयोजकों द्वारा 25 से ज्यादा झांकियां निकाली जाएगी। इसमें क्रमानुसार 1. खजराना गणेश मंदिर 2.आईडीए 3. नगर निगम 4.होप टेक्सटाइल (भण्डारी मिल) 5. कल्याण मिल 6. मालवा मिल 7. हुकुमचंद मिल 8. स्वदेशी मिल 9. राजकुमार मिल 10. स्पूतनिक ट्यूटोरियल एकेडमी 11. जय हरसिद्धी माँ सेवा समिति व 12. श्री शास्त्री कार्नर नवयुवक मंडल की झांकियां रहेंगी। इस बार कोई झांकियों को लेकर कोई नए आयोजक या एजेंसी शामिल नहीं है।

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