कूनो नेशनल पार्क से योगेश पांडे5 मिनट पहले
मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीते लाए जाने की आहट के बीच ही आसपास के इलाकों की जमीनों के भाव आसमान छूने लगे हैं। साथ ही इलाके में रिसॉर्ट और होटल कारोबार के फलने-फूलने की उम्मीदें भी बहुत बढ़ गई हैं। पालपुर राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाले ऋषिराज सिंह ने तो रिसोर्ट का निर्माण शुरू करवा दिया था। फिलहाल वे यहां 12 कमरे बना रहे हैं। वे मानते हैं कि पिछले साल तक यहां जमीनों के दाम 1 से 3 लाख रुपए बीघा थे, जो बढ़कर अब 11.5 लाख के पार हो गए हैं। जमीन खरीदने वालों में कई लोग राजस्थान के हैं।
ऋषिराज की तरह ही कई इन्वेस्टर्स कूनो के आसपास अफ्रीकी चीतों में अपने बिजनेस का भविष्य देख रहे हैं। इन्हें उम्मीद हैं कि चीते अपने साथ टूरिज्म की संभावना भी ला रहे हैं। जमीन के दाम चीतों के आने की खबर भर से 5 से 10 गुना तक बढ़ गए हैं। आलम ये है कि सेसईपुरा से टिकटौली के एंट्री गेट को जोड़ने वाली बेजान सड़क के किनारे की ज्यादातर जमीनों के सौदे हो गए हैं या हो रहे हैं।
जमीन खरीदने वालों में राजस्थान के लोग भी हैं। वे कूनो से रणथंभौर की 150 किलोमीटर की दूरी में भविष्य के पर्यटन की उम्मीद खोज रहे हैं। उन्हें लगता है कि रणथंभौर के बाघ देखने आने वाले पर्यटकों को कूनो के लुभावने ऑफर मिले तो वे यहां जरूर आएंगे।
सौदा मुश्किल, क्योंकि आदिवासियों की जमीनें पट्टे की हैंदैनिक भास्कर ने जब यहां गांववालों से जमीन खरीदने को लेकर पूछताछ की तो ग्रामीणों ने बताया कि यह आदिवासियों की जमीन है, जिनका सौदा प्रतिबंधित है। हो सकता है खरीदारों को जमीन मिल जाए, लेकिन इनकी रजिस्ट्री नहीं होगी। ग्रामीणों ने भी माना कि चीतों के आने की हलचल से जमीन के रेट बढ़ गए हैं। कितने बढ़े? इस सवाल के जवाब अलग-अलग हैं। कहीं 7 लाख तो कहीं 11 लाख रुपए बीघा, जबकि पहले यही जमीन 80 हजार से एक लाख रुपए बीघे तक में कोई लेने तैयार नहीं था। हमने आमने-सामने की जितनी जमीनों की पूछपरख की तो लोगों ने बताया कि इसका सौदा हो गया है, या हो रहा है। अब जो जमीनें बची हैं, वो ज्यादातर आदिवासियों की है, जो उन्हें सरकार से पट्टे पर मिली हुई है।
2 साल में इक्का-दूक्का पयर्टक आए, अब उम्मीद बढ़ीफिलहाल तो यहां ठहरने के लिए सिर्फ एक कूनो जंगल रिसोर्ट है। कूनो नदी के किनारे पर्यटन विभाग से लीज पर लिए गए इस रिसोर्ट में पर्यटकों के लिए खासी तैयारियां हैं। जाहिर है रेट भी वैसे ही हैं। कूनो से लगे शिवपुरी और श्योपुर जिले में भी अभी ऐसे होटल नहीं हैं, जो जंगल देखने आने वाले पर्यटकों को रोक पाएं। रिसोर्ट के मैनेजर सुदर्शन पाठक अपने रिसोर्ट में तेजी से काम करवा रहे हैं। साउथ अफ्रीका से चीतों के अनुकूलन को समझने के लिए आई डॉक्टरों की टीम इसी रिसोर्ट में ठहरी हुई थी। पाठक कहते हैं कि बीते 2 सालों से यहां इक्का-दुक्का पर्यटक ही आते रहे हैं, लेकिन अब कमरे कम पड़ सकते हैं, इसलिए कुछ नए कमरे तैयार करवाए जा रहे हैं। हालांकि वीकेंड पर प्रेशर होता है। चीतों के आने से पहले ही इस रिसोर्ट ने भी अपना दायरा बढ़ाने के लिए जमीन के नए सौदे किए हैं। इसी गांव के एक जनपद सदस्य भारत सिंह गुर्जर कहते हैं- ज्यादातर लोग यहां अब होटल और रिसोर्ट खोलना चाहते हैं। जाहिर है युवाओं काे काम मिलेगा।
ग्रामीण बोले- ‘हम जमीन बेच देंगे तो बताइए खाएंगे क्या’नेशनल पार्क का सबसे करीबी गांव है टिकटोली। यहीं से होकर इसका एंट्री गेट भी है। यहां के लोग चीतों के आने से बेखबर से हैं। उनके चेहरे पर न चीतों के आने की चमक है, न कोई डर। वे अपने रोजमर्रा के कामों में जुटे हैं। यहां मिले कुछ नौजवान जो बीएसएनएल की लाइन को जैसे-तैसे नेशनल पार्क तक खींचने की कोशिश में जुटे थे, उन्होंने बताया कि उन्हें इसकी कोई खुशी नहीं है। इससे तो और मुश्किल बढ़ेंगी। हमारे जानवर ज्यादा खतरे में आ जाएंगे।
हालांकि इससे 6.50 किलोमीटर पहले के मोरावन गांव के बुजुर्गों ने मिली जुली प्रतिक्रिया दी। वे अपने पालतू जानवरों के चीतों का शिकार बनने को लेकर आशंकित तो हैं, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि शायद चीतों के बहाने बढ़ने वाले पर्यटन से उनके जवान बच्चों के रोजगार की राह खुल जाए। वे कहते हैं कि ढाबे-होटल खुलेंगे तो उनके बच्चों को काम मिल जाएगा।
उन्हें जमीन के रेट बढ़ने की खुशी नहीं है। वे कहते हैं कि जमीन बेच देंगे तो फिर क्या खाएंगे? पहले भी एकबार इसी जंगल के विस्तार के लिए वे अपनी जड़ों से बेदखल हो चुके हैं।
पुलियाएं टूटी हैं, गाड़ी फंसने की आशंका हैफिलहाल कूनो पहुंच मार्ग के हालात इतने खराब हैं कि यहां गर्मी में वाहनों के पीछे धुल का गुबार कुछ यूं उड़ता है कि आपको न चाहकर भी अपनी गाड़ी को रोकना ही पड़ेगी। यदि आपने जल्दबाजी दिखाई तो सामने किसी क्षतिग्रस्त पुलिया या उबड-खाबड़ रास्ते में आपकी गाड़ी के फंसने का जोखिम है। यहां प्रशासन फौरी तौर पर इसे दुरुस्त करने की दिखावटी कोशिश कर रहा है। दिखावटी इसलिए कहेंगे क्योंकि इसके पगडंडीनुमा रास्ते में मात्र 10 किलोमीटर के दायरे में ही 4 पुलिया क्षतिग्रस्त हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के इंजीनियर इसे दुरुस्त करवा रहे हैं, लेकिन वे खुद भी वजनदार गाड़ियों के इससे गुजरने पर इसकी सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकते। इसके अलावा सड़क से यहां पहुंचने का और कोई सुलभ रास्ता है भी नहीं।
मोबाइल नेटवर्क नहीं, अब बिछी BSNL की अस्थाई लाइनकूनो के बाहर वीरान पड़ी जमीन पर लगे एक बोर्ड में पर्यटन पुलिस चौकी के लिए आरक्षित जमीन का बोर्ड जरूर लगा है, लेकिन किसी के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि यहां पुलिस कब आएगी? जब तक पुलिस नहीं आएगी, तब तक पर्यटक भी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नहीं होंगे। यहां सबसे नजदीकी थाना सेसईपुरा है। इसकी दूरी टिकटौली गेट से 8.50 किलोमीटर है। रास्ते में नेटवर्क के काम नहीं करने की पूरी गारंटी है। प्रधानमंत्री मोदी के आने से पहले बीएसएनएल की अस्थाई लाइन पार्क तक खींची जा रही है, लेकिन ये कब स्थाई होगी फिलहाल ये कहना मुश्किल है।
कुछ गांव वाले विदेश से जानवर लाने से नाराजश्योपुर के अरविंद सिकरवार इन चीतों के आने से खुश नहीं हैं। वे कहते हैं कि भले ही सरकार चीतों के आने का जश्न मना रही है, लेकिन टूरिज्म ही सबकुछ नहीं है। शिवपुरी से श्योपुर के बीच करहल के पास गोरस गांव में 1.50 लाख गाय हैं। नंदा गुर्जर यहां की सरपंच हैं।
हिन्दुस्तान की सबसे पुरानी जनजाति सहरिया यहां रहती है। मुरैना, श्योपुर, अशोकनगर, गुना के अलावा और कहीं ये जनजाति नहीं मिलेगी। ये ऐसी जनजाति है, जिनकी कोई राजस्व भूमि नहीं है। गडरिया समुदाय यहां बहुतायत में है। लंबे समय से सूखा एरिया भी रहा है। ये यहां सर्वाइव इसलिए भी कर रहे हैं, क्योंकि पशुपालन ही इनका मुख्य धन है। सरकार कूनो को गो-अभ्यारण्य भी बना सकती थी।
अफसरों ने यहां भी दिखाया विदेशी पौधों का प्रेमसरकार के अफसरों ने कूनो के बाहर भी विलायती पर्वतीय बबूल लगाए हैं। वो ऑस्ट्रेलिया का पौधा है। इस पौधे का पहला दुर्गुण ये है कि कभी सूखता नहीं है। यूकेलिप्टस से ज्यादा पानी खींचता है। इस पौधे की बाड़ वहां लगाई गई है जो औषधीय जंगल है। यहां की घास को सतपुड़ा के जंगल में लगाने की तैयारी है। आदिवासियों का माइग्रेशन भी हमें ध्यान में रखना होगा। ये भी एक चिंता की बात है।
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